मोहभंग
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इश्क़ में परवाने को सौंपी जो ख्वाबों की पतंग थी,
उस परिंदे का टूट कर अरमानों की शैया पर गिर जाना उसकी तकदीर थी,
बयाँ होती नहीं शोला और शबनम की वो दास्तां जो एक दौर मिसाल बनती थी,
शेष कहाँ है वो गहरा समंदर जब लहरें सुंदरता पर रुकी थीं, तोड़ा तूने प्रेम का मृदंग पिया, यह तेरा साज़ था जिससे मिराज सजा था,
यह मोह भंग था पिया तेरा, जिसने प्रणय का चक्रव्यू रचा था ।
दिल की दहलीज़ पर पड़ी पहली दफा वो तेरे कदमों की आहट थी,
उस राज महल में तेरा राज्य अभिषेक हो जाना उसकी एक मात्र तमन्ना थी,
बयाँ होती नहीं आज उससे यार-ए-उल्फ़त तुम्हारी जो तेरी राधा हुआ करती थी,
शेष कहाँ है वो सुनहरे लम्हें जब आँखों के इशारों में गुफ़्तगू हुआ करती थी,
तोड़ा तूने प्रेम का मृदंग पिया, यह तेरा साज़ था जिससे मिराज सजा था,
यह मोह भंग था पिया तेरा, जिसने प्रणय का चक्रव्यू रचा था ।
तेरी बेवफाई के सुनहरे खंजर से घायल हुई उसकी आत्मा थी,
दुनिया को पराया कर तेरी हो जाना उसकी एक यही आरज़ू थी,
टूटा वो प्रेम के सौदागर का भ्रम जब उतारी उसने तूफानों में कश्ती थी,
शेष कहाँ है वो कोहिनूर जब आईने की झलक में फ़रामोशी उछल रही थी,
तोड़ा तूने प्रेम का मृदंग पिया, यह तेरा साज़ था जिससे मिराज सजा था,
यह मोह भंग था पिया तेरा, जिसने प्रणय का चक्रव्यू रचा था ।
गुलाब की पंखुड़ियों पर चढ़ी मोगरे की महक में पिरोई विश्वास की जयमाला थी,
तेरे भेंट किए काँटों ने उसके जीवन में लहू और अश्रु की सुगंध छिड़की थी,
मिटी वो बचपन में लिखी घोड़े पे आएगा राजकुमार कि कविता की पंक्ति थी,
शेष है कहाँ वो सात वचन का रिश्ता जब रम्भा पर चाहत लुटानी थी,
तोड़ा तूने प्रेम का मृदंग पिया, यह तेरा साज़ था जिससे मिराज सजा था,
यह मोह भंग था पिया तेरा, जिसने प्रणय का चक्रव्यू रचा था ।
कैसे बदल रहा है वो प्रेम की प्रतिज्ञा का बन्धन जो सदियों से चली रीत थी,
बिखर रहे हैं वो सिन्दूरी कण जिसमें श्रृंगार से प्रतिभा सजी थी,
हरे बांस मंडप के वो गीत छूट रहे हैं जिसमें सात जन्मों के सँग की प्रथा थी,
शेष हैं कहाँ वो घनेरी अमावस्या में जलते दिए जब चाँदनी की चमक से दिल्लगी थी,
तोड़ा तूने प्रेम का मृदंग पिया, यह तेरा साज़ था जिससे मिराज सजा था,
यह मोह भंग था पिया तेरा, जिसने प्रणय का चक्रव्यू रचा था ।
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