एक नयी सोच 117 Views एक नयी सोच िम्मत छूटी है मंज़िल नहीं, रास्ते कठिन है पर नामुमकिन नहीं, किस्मत हारी है, मजबूरी नहीं |ग़म कुछ इस तरह बढ़ गए, की इंसान खामोश और दिमाग हल्ला बोल पर है |दीवारें शांत है, पर उम्मीदे नहीं |क्यों आकांक्षाएँ जीने नहीं देती? क्यों जरूरतें उड़ने नहीं देती? “आजाद” एक ऐसा शब्द है जो हकीकत में शायद है ही नहीं |जिंदगी अपने हिसाब से जियो, अभीं भी एक उम्मीद है |आज आखों मे नमी है, जुबान पर हिचकिचाहट है, दिल में गुस्सा दिमाग में अशांति का मंजर है |ख़ैर वक़्त वक़्त की बात है, ये वक़्त भी शायद बदल जाए, या बदल दे इंसान को, ना जाने क्या है सच्चाई |बस कोशिश ये है कि ख्वाहिशें बोझ ना बन जाए, और जिंदगी बंजर ज़मी | Ishita writer Viewers: 113