कुछ अपने लोग
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अजनबी शहर , अनजान रास्तें
अनजाने लोग, अनेक इरादे
मेरी तन्हाइयों पर खिलखिलाते रहे
मेरे कामों पर बहाने बनाने वाले लोग
अपने कामों पर प्यार से पुकारते रहे I
माँ के प्यार की कमी ,
पापा की डाट की कमी इतनी रही कि
मेरे आसू कभी भी कहीं भी निकलने लगे l
पर कुछ थे यहाँ अपने
कोई था दीवाना
तो कोई थी दीवानी
कोई था भाई
तो कोई था दोस्त
सब अपना प्यार
अलग अलग तरीके से दिखाते रहे l
कमी नहीं थी प्यार की
मेरे हर आसुओं को मुस्कराहट में बदलते रहे l
हर महीने कभी कॉफी तो कभी दूध
कभी किसी बात का गुस्सा
तो कभी किसी बात की नाराजगी मेरी
मेरे यार मुझसे प्यार करते रहे l
अजनबी शहर के मेरे प्यारे दोस्त
मेरी तन्हाइयों पर मेरा साथ देते रहे l
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Gauranshi Garg is in the final year of BSC (HON) Mathematics. She is from Miranda House, University of Delhi
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